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पैरोडी पर बवाल: कुणाल कामरा के व्यंग्य को मिला कानूनी नोटिस, कॉमेडी और सेंसरशिप के बीच छिड़ी जंग

महाराष्ट्र में कॉमेडियन कुणाल कामरा का पैरोडी सॉन्ग एक बड़े विवाद का कारण बन गया है। डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे पर कटाक्ष करने वाले इस वीडियो के चलते कामरा को दो समन मिल चुके हैं और 31 मार्च को पूछताछ के लिए पुलिस ने उन्हें तलब किया है।

क्या है पूरा मामला?

कुणाल कामरा ने मिस्टर इंडिया फिल्म के मशहूर गाने “हवा हवाई” की तर्ज पर एक पैरोडी सॉन्ग बनाया, जिसमें उन्होंने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे पर व्यंग्य कसा। इस वीडियो के बाद टी-सीरीज ने कामरा को कॉपीराइट नोटिस भेजा है।

कामरा ने सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “पैरोडी और व्यंग्य कानूनी रूप से फेयर यूज के अंतर्गत आते हैं। मैंने गाने के मूल लिरिक्स या इंस्ट्रुमेंटल का उपयोग नहीं किया है। अगर मेरा वीडियो हटाया जाता है, तो हर कवर सॉन्ग और डांस वीडियो को भी हटाना पड़ेगा।”

क्यों भड़के शिवसेना समर्थक?

22 मार्च को कामरा के वीडियो के वायरल होने के बाद, शिवसेना (शिंदे गुट) के समर्थकों ने मुंबई के खार स्थित हैबिटेट कॉमेडी क्लब में जमकर तोड़फोड़ की। उनका आरोप है कि वीडियो में एकनाथ शिंदे को “गद्दार”, “दलबदलू” और “फडणवीस की गोद में बैठने वाला” कहा गया है। साथ ही, वीडियो में शिंदे के ऑटो रिक्शा चलाने और ठाणे से होने का भी जिक्र है, जिससे समर्थकों में आक्रोश फैल गया।

डिप्टी सीएम शिंदे ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “व्यंग्य और कटाक्ष की भी मर्यादा होनी चाहिए। ऐसा लगता है कि कुणाल ने सुपारी लेकर यह किया है।”

कामरा का पलटवार

तोड़फोड़ के बाद भी कामरा अपने बयान पर अडिग हैं। उन्होंने साफ कहा कि वह माफी नहीं मांगेंगे और इस तरह की हिंसा के आगे नहीं झुकेंगे। उनका मानना है कि पैरोडी और व्यंग्य कला के अभिन्न अंग हैं और उन पर लगाम लगाना रचनात्मक स्वतंत्रता का हनन है।

कानूनी पेंच और राजनीतिक रंग

कामरा के खिलाफ FIR दर्ज की गई है, और महाराष्ट्र के गृह राज्य मंत्री योगेश कदम ने उनके कॉल रिकॉर्डिंग, CDR और बैंक स्टेटमेंट की जांच करने के निर्देश दिए हैं। दूसरी ओर, बीएमसी ने कॉमेडी क्लब के आयोजन स्थल यूनीकॉन्टिनेंटल होटल पर भी कार्रवाई की है।

क्या कहना है एक्सपर्ट्स का?

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि पैरोडी सॉन्ग्स और व्यंग्य को भारतीय कानून में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का संरक्षण मिलता है। हालांकि, अगर इसमें किसी की छवि खराब करने या गलत सूचना फैलाने की मंशा होती है, तो कानूनी कार्रवाई संभव है।

कला और व्यंग्य समाज को आईना दिखाने का एक सशक्त माध्यम हैं। हालांकि, कलाकारों को भी अपनी अभिव्यक्ति में संयम रखना चाहिए। दूसरी ओर, सत्ता पक्ष को आलोचना को सहने का धैर्य भी रखना चाहिए। किसी व्यंग्य के जवाब में हिंसा और तोड़फोड़ करना लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।

यह मामला सिर्फ कुणाल कामरा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सत्ता के बीच की खींचतान को दर्शाता है। क्या राजनीतिक व्यंग्य अब कानूनी दांवपेंच में उलझ जाएगा या फिर कला को अपनी स्वतंत्र उड़ान मिलेगी? इसका जवाब आने वाला समय ही देगा।