मुगल सम्राट औरंगज़ेब की कब्र हटाने का मुद्दा देशभर में चर्चा का विषय बन गया है। इसे लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दाखिल की गई है। केतन तिरोडकर नामक व्यक्ति ने यह याचिका दाखिल कर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को औरंगज़ेब की कब्र को राष्ट्रीय स्मारकों की सूची से हटाने का निर्देश देने की मांग की है। याचिका में तर्क दिया गया है कि यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण अधिनियम 1958 की धारा 3 के अनुरूप नहीं है।
औरंगज़ेब फिर से चर्चा में क्यों आया?
हाल ही में रिलीज़ हुई बॉलीवुड फिल्म ‘छावा’ में छत्रपति संभाजी महाराज और औरंगज़ेब के बीच हुए संघर्ष को दिखाया गया है। फिल्म ने दर्शकों को औरंगज़ेब की क्रूरता से अवगत कराया, जिसमें बताया गया कि औरंगज़ेब ने संभाजी महाराज पर बर्बर अत्याचार किए। उन्होंने संभाजी महाराज के नाखून और आंखें निकलवा दीं और उनकी जीभ भी काट दी। औरंगज़ेब चाहता था कि संभाजी इस्लाम कबूल करें, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया।
फिल्म देखने के बाद, जब लोगों को संभाजी महाराज की वीरता और औरंगज़ेब की क्रूरता के बारे में जानकारी मिली, तो औरंगज़ेब की कब्र को हटाने की मांग उठने लगी। छत्रपति संभाजी महाराज, मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र थे।
कब्र हटाने का मुद्दा कैसे उठा?
इस मुद्दे को समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आज़मी के बयान ने और हवा दी। ‘छावा’ फिल्म के रिलीज़ होने के बाद अबू आज़मी ने औरंगज़ेब को एक अच्छा शासक बताया, जिससे विवाद खड़ा हो गया। हालांकि, विवाद बढ़ने के बाद उन्होंने अपना बयान वापस ले लिया।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस संबंध में कहा कि छत्रपति संभाजीनगर में स्थित औरंगज़ेब की कब्र को हटाने की प्रक्रिया कानून के दायरे में रहकर की जानी चाहिए। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि पिछली कांग्रेस सरकार ने औरंगज़ेब की कब्र को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के अधीन कर दिया था।
अब इस मामले पर बॉम्बे हाईकोर्ट में सुनवाई होगी और अदालत का निर्णय इस विवादास्पद मुद्दे पर महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।

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