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Wednesday, March 12   2:37:14

Lawrence Bishnoi के करीबी का खात्मा: जानें कौन था अमन साहू, जिसका हुआ फिल्मी अंदाज में एनकाउंटर?

झारखंड के सबसे कुख्यात गैंगस्टर्स  में शुमार अमन साहू का अंत उसी अंदाज में हुआ, जिस अंदाज में उसने अपराध की दुनिया में कदम रखा था—खून, गोलियां और बम धमाकों के बीच। मंगलवार को झारखंड पुलिस की एंटी टेररिस्ट स्क्वॉड (ATS) की टीम उसे रायपुर जेल से रांची ला रही थी, लेकिन रास्ते में उसके गैंग ने उसे छुड़ाने की साजिश रच दी। पलामू के अन्हारी ढ़ोढ़ा घाटी में स्कॉर्पियो पर बम से हमला किया गया। इसी दौरान अमन साहू ने एक पुलिसकर्मी की राइफल छीन ली और भागने की कोशिश की, लेकिन पुलिस ने जवाबी कार्रवाई में उसे ढेर कर दिया।

अपराध की दुनिया का हाई-प्रोफाइल गैंगस्टर

अमन साहू सिर्फ एक आम अपराधी नहीं था, बल्कि झारखंड पुलिस के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन चुका था। उसका नाम रंगदारी, हत्याएं, फायरिंग और संगठित अपराध से जुड़ा था। वह कोयला कारोबारी, ट्रांसपोर्टर, ठेकेदार, रियल एस्टेट कारोबारी और बिल्डर  से वसूली करता था। उसकी एक खास रणनीति थी—जो उसकी बात नहीं मानते थे, उन पर खुलेआम फायरिंग करवाई जाती थी और फिर गैंग सोशल मीडिया पर वीडियो डालकर जिम्मेदारी लेता था।

पढ़ाई में होशियार, लेकिन अपराध में महारथी

अमन साहू के अपराधी बनने की कहानी भी दिलचस्प है। साल 1995 में रांची के बुढ़मू गांव में जन्मा यह शख्स पढ़ाई में तेज था। 2010 में 78% अंकों के साथ मैट्रिक पास किया और फिर पंजाब के मोहाली से इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी और कंप्यूटर साइंस में डिप्लोमा किया। लेकिन पढ़ाई के बावजूद उसकी किस्मत अपराध की अंधेरी गलियों में ही लिखी थी।

कैसे बना झारखंड का मोस्ट वांटेड?

साल 2012 में जब वह घर लौटा, तो उसकी मुलाकात झारखंड जनमुक्ति मोर्चा के सुप्रीमो कुलेश्वर सिंह से हुई। यही वह मोड़ था, जहां से उसने अपराध की दुनिया में कदम रखा। 2015 में पहली बार जेल जाने के बाद वह कुख्यात अपराधियों सुजीत सिन्हा और मयंक सिंह से मिला, जिसने उसे संगठित अपराध का असली तरीका सिखाया। फिर उसने अपना खुद का गैंग खड़ा कर लिया, जो झारखंड के 8 जिलों में सक्रिय था।

10 जेलों में ट्रांसफर, लेकिन अपराध नहीं रुका

अमन साहू का आतंक इस कदर बढ़ चुका था कि 4 सालों में उसे 10 बार अलग-अलग जेलों में ट्रांसफर किया गया। इसके बावजूद , वह जेल से ही रंगदारी का धंधा चलाता रहा। हालात ऐसे बन गए थे कि झारखंड पुलिस और कारोबारियों के लिए उसका खात्मा जरूरी हो गया था।

लॉरेंस बिश्नोई गैंग से कनेक्शन और रायपुर में आतंक

अमन साहू का नाम सिर्फ झारखंड तक सीमित नहीं था। वह लॉरेंस बिश्नोई गैंग के साथ भी काम करता था। झारखंड के बाद उसने छत्तीसगढ़ के रायपुर में भी रंगदारी का धंधा शुरू कर दिया था। रायपुर के तेलीबांधा इलाके में एक कारोबारी प्रह्लाद राय अग्रवाल की कार पर उसके गुर्गों ने गोलियां बरसाईं। इस केस में उसका नाम सामने आने के बाद उसे रायपुर जेल लाया गया था।

विधानसभा चुनाव लड़ने का सपना, लेकिन अदालत ने झटका दिया

अमन साहू की हिम्मत इतनी बढ़ चुकी थी कि वह राजनीति में भी कदम रखना चाहता था। उसने बड़कागांव विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए पर्चा खरीदा और झारखंड हाईकोर्ट में याचिका दायर की। लेकिन अदालत ने 120 से अधिक गंभीर अपराधों को देखते हुए उसकी याचिका खारिज कर दी।

एनकाउंटर: अपराध की किताब का आखिरी पन्ना

14 अक्टूबर 2024 को झारखंड पुलिस उसे रायपुर से प्रोडक्शन वारंट पर लाई थी। 11 मार्च ,मंगलवार सुबह 9:15 बजे पलामू में एनकाउंटर हुआ और झारखंड का मोस्ट वांटेड अपराधी हमेशा के लिए खत्म हो गया।

अमन साहू की कहानी से क्या सबक?

अमन साहू की जिंदगी का सफर बताता है कि अपराध की राह पर कितना भी बड़ा नाम कमा लो, अंत हमेशा बुरा ही होता है। पढ़ाई-लिखाई में अच्छा होने के बावजूद उसने अपराध को चुना और उसका अंजाम सामने है—बंदूक से निकली गोलियों ने उसी की कहानी खत्म कर दी।