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Monday, March 10   5:35:36

क्या कभी ‘मौत की होली’ के बारे में सुना है? श्मशान की राख से सजी काशी की वो रहस्यमयी होली, सुनकर रह जाएंगे आप दंग!

जब पूरा देश रंग-गुलाल में सराबोर होकर होली का उत्सव मनाता है, तब काशी की गलियों में एक अलग ही दृश्य देखने को मिलता है। यहां रंगों की जगह चिता की राख उड़ती है, गुलाल की जगह भस्म उड़ाकर शिव की आराधना होती है, और हंसी-खुशी के बीच मृत्यु का उत्सव मनाया जाता है। इसे कहते हैं ‘मसान होली’—वो होली, जो सिर्फ काशी में, सिर्फ महादेव के भक्तों के बीच खेली जाती है।

क्यों खेली जाती है चिता की राख से होली?

मसान होली सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि शिवभक्तों के लिए आध्यात्मिक अनुभव है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान शिव ने यमराज को पराजित किया था, तब उन्होंने चिता की राख से खुद को रंगकर होली खेली थी। यह परंपरा मृत्यु को महज एक परिवर्तन मानने वाले शिव के भक्तों के लिए जीवन और मृत्यु की सीमाओं को मिटाने का प्रतीक बन गई। इस होली का संदेश स्पष्ट है—मृत्यु से डरने की जरूरत नहीं, बल्कि उसे महादेव के प्रसाद की तरह स्वीकार करना चाहिए।

काशी का मणिकर्णिका घाट—जहां दिन-रात चिताएं जलती हैं, जहां हर पल जीवन और मृत्यु का खेल चलता रहता है—वहीं यह अनूठी होली खेली जाती है। माना जाता है कि जो कोई इस दिन चिता की राख से खुद को रंगता है, उसे शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है और मोक्ष की प्राप्ति का द्वार खुल जाता है।

यहां होली नहीं, महादेव की बारात निकलती है!

इस दिन हरिश्चंद्र घाट से एक विशाल झांकी निकाली जाती है। इसमें शिव-पार्वती के रूप में सजे युवक-युवती रथ पर विराजमान होते हैं, और पीछे-पीछे चलते हैं अघोरी, साधु, तांत्रिक और हज़ारों श्रद्धालु। कुछ लोग मुंह में सांप दबाकर नृत्य करते हैं, तो कुछ आग से खेलते हैं।

इस झांकी के दौरान डीजे पर एक ही गीत गूंजता रहता है—
“होली खेले मसाने में, काशी में खेले, घाट में खेले, खेले औघड़ मसाने में…”

आज भी उतनी ही भव्यता से मनाई जाती है यह होली

वाराणसी में महाश्मशान हरिश्चंद्र घाट पर मसाने की होली शुरू हो चुकी है। शिवभक्त ढोल-डमरू और डीजे की धुन पर थिरक रहे हैं, वहीं मां काली और शिव का रूप धरे कलाकार तांडव कर रहे हैं। चारों ओर ‘हर-हर महादेव’ के जयकारे गूंज रहे हैं, और शिवभक्त इस अलौकिक माहौल में डूब चुके हैं।

चिताओं की राख से सजी होली

जहां एक तरफ जलती चिताओं से धुआं उठ रहा है, वहीं दूसरी तरफ शिवभक्त चिता भस्म से होली खेल रहे हैं। आम लोग जो आमतौर पर राख से दूर रहते हैं, वे भी एक चुटकी भस्म पाने के लिए घंटों इंतजार कर रहे हैं।

कीनाराम आश्रम से शिव बारात निकल चुकी है, जो तांडव करते हुए हरिश्चंद्र घाट की ओर बढ़ रही है। यहां नागा संन्यासी और शिवभक्त चिता भस्म से होली खेलकर इस अनोखी परंपरा को जीवंत कर रहे हैं।

विदेशी पर्यटकों का उत्साह

इस होली को देखने के लिए 20 से अधिक देशों से करीब 5 लाख पर्यटक वाराणसी पहुंच चुके हैं। विदेशी पर्यटक भी खुद को इस परंपरा का हिस्सा बनाने के लिए चिता की राख अपने शरीर पर लगा रहे हैं। एक विदेशी पर्यटक ने उत्साहित होकर कहा, “यह मैंने पहले कभी नहीं देखा, यह बहुत ही सुंदर और अद्भुत अनुभव है।”

हालांकि, इस बार कमेटी ने महिलाओं को चिता भस्म की होली में शामिल होने की अनुमति नहीं दी है, लेकिन घाट पर श्रद्धालुओं और पर्यटकों की भारी भीड़ उमड़ी हुई है।

मृत्यु और जीवन के संगम की अनूठी परंपरा

मसाने की होली केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु के बीच संतुलन का प्रतीक है। यह परंपरा हमें सिखाती है कि शिव के चरणों में हर भय समाप्त हो जाता है और मृत्यु भी एक उत्सव बन सकती है। वाराणसी की इस अनूठी होली ने एक बार फिर दुनिया को भारतीय संस्कृति की गहराई से परिचित करा दिया है।