यहां होली नहीं, महादेव की बारात निकलती है!
इस दिन हरिश्चंद्र घाट से एक विशाल झांकी निकाली जाती है। इसमें शिव-पार्वती के रूप में सजे युवक-युवती रथ पर विराजमान होते हैं, और पीछे-पीछे चलते हैं अघोरी, साधु, तांत्रिक और हज़ारों श्रद्धालु। कुछ लोग मुंह में सांप दबाकर नृत्य करते हैं, तो कुछ आग से खेलते हैं।
इस झांकी के दौरान डीजे पर एक ही गीत गूंजता रहता है—
“होली खेले मसाने में, काशी में खेले, घाट में खेले, खेले औघड़ मसाने में…”
आज भी उतनी ही भव्यता से मनाई जाती है यह होली
वाराणसी में महाश्मशान हरिश्चंद्र घाट पर मसाने की होली शुरू हो चुकी है। शिवभक्त ढोल-डमरू और डीजे की धुन पर थिरक रहे हैं, वहीं मां काली और शिव का रूप धरे कलाकार तांडव कर रहे हैं। चारों ओर ‘हर-हर महादेव’ के जयकारे गूंज रहे हैं, और शिवभक्त इस अलौकिक माहौल में डूब चुके हैं।
चिताओं की राख से सजी होली
जहां एक तरफ जलती चिताओं से धुआं उठ रहा है, वहीं दूसरी तरफ शिवभक्त चिता भस्म से होली खेल रहे हैं। आम लोग जो आमतौर पर राख से दूर रहते हैं, वे भी एक चुटकी भस्म पाने के लिए घंटों इंतजार कर रहे हैं।
कीनाराम आश्रम से शिव बारात निकल चुकी है, जो तांडव करते हुए हरिश्चंद्र घाट की ओर बढ़ रही है। यहां नागा संन्यासी और शिवभक्त चिता भस्म से होली खेलकर इस अनोखी परंपरा को जीवंत कर रहे हैं।
विदेशी पर्यटकों का उत्साह
इस होली को देखने के लिए 20 से अधिक देशों से करीब 5 लाख पर्यटक वाराणसी पहुंच चुके हैं। विदेशी पर्यटक भी खुद को इस परंपरा का हिस्सा बनाने के लिए चिता की राख अपने शरीर पर लगा रहे हैं। एक विदेशी पर्यटक ने उत्साहित होकर कहा, “यह मैंने पहले कभी नहीं देखा, यह बहुत ही सुंदर और अद्भुत अनुभव है।”
हालांकि, इस बार कमेटी ने महिलाओं को चिता भस्म की होली में शामिल होने की अनुमति नहीं दी है, लेकिन घाट पर श्रद्धालुओं और पर्यटकों की भारी भीड़ उमड़ी हुई है।

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