Bhumi Pednekar: महिलाओं से जुड़ी सामाजिक समस्याओं को अपने किरदारों के माध्यम से आवाज़ देने और अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए जानी जाने वाली अभिनेत्री भूमि पेडनेकर ने एक बार फिर फिल्म ‘मेरे हसबैंड की बीवी’ में समाज को झकझोरने की कोशिश की है, हालांकि हास्य के माध्यम से। फिल्म नहीं चली, इसका मतलब यह नहीं कि समाज जाग गया।
अभिनेत्री कहती हैं, ‘दशकों पुरानी कुछ सामाजिक समस्याएं इक्कीसवीं सदी में भी जस की तस बनी हुई हैं। मैं आपको एक उदाहरण देती हूं। कुछ समय पहले मैं एक साहित्य सम्मेलन में शामिल हुई थी, जहां मैंने सआदत हसन मंटो की कहानी ‘खोल दो’ पढ़ी। यह कहानी विभाजन के दौरान महिलाओं पर हुए अत्याचारों की दास्तान बयां करती है। इसमें सकीना नाम की एक लड़की पर बार-बार बलात्कार किए जाने का हृदयविदारक वर्णन है। आज भी जब मैं महिलाओं के साथ हो रही ऐसी ही घटनाओं के बारे में सुनती हूं, तो मुझे ऐसा लगता है कि ‘खोल दो’ 80 साल पहले नहीं, बल्कि आज लिखी गई है। हमने तकनीक से लेकर हर क्षेत्र में सराहनीय विकास किया है, लेकिन सामाजिक समस्याओं के मामले में हम आज भी पिछड़े हुए हैं। महिलाओं का शोषण पहले जैसा ही जारी है। ये और ऐसे कई मुद्दे मुझे हमेशा कचोटते हैं। मैं अपनी फिल्मों के माध्यम से अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का प्रयास करती हूं और दर्शकों पर अलग छाप छोड़ना चाहती हूं।’
हर इंसान के जीवन में उतार-चढ़ाव आते हैं, और भूमि के जीवन में भी कई कठिन दौर आए हैं। अभिनेत्री कहती हैं, ‘मेरे पिता के निधन का समय हमारे परिवार के लिए सबसे कठिन दौर था। हम भावनात्मक रूप से ही नहीं, बल्कि आर्थिक रूप से भी टूट चुके थे। लेकिन ईश्वर की कृपा से मुझे यश चोपड़ा के स्टूडियो में असिस्टेंट कास्टिंग डायरेक्टर की नौकरी मिल गई। इस नौकरी ने न केवल हमारे मुश्किल समय को आसान बनाया, बल्कि मेरे जीवन को भी सकारात्मक दिशा दी। आज जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूं, तो समझ में आता है कि इसी नौकरी ने फिल्म इंडस्ट्री में मेरे लिए दरवाजे खोले। मेरी पहली फिल्म ‘दम लगाके हईशा’ को यशराज फिल्म्स ने ही प्रोड्यूस किया था। इसके लिए मैं दिवंगत यश अंकल और आदित्य चोपड़ा का जितना शुक्रिया अदा करूं, उतना कम है।’
अपनी हालिया फिल्म के केंद्रीय विषय पर बात करते हुए भूमि कहती हैं, ‘आज भी विवाहित महिलाओं पर पुरुषों की तुलना में ज्यादा दबाव होता है। मैंने अपनी कई सहेलियों को इस दबाव से जूझते देखा है, चाहे वे अपनी युवावस्था में किसी ऊंचे ओहदे पर पहुंची हों या तीस की उम्र पार करने के बाद। निश्चित रूप से हर व्यक्ति की परेशानियां अलग होती हैं, लेकिन उनके मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर इसका प्रभाव पड़ता ही है। इससे उनके वैवाहिक जीवन पर भी असर पड़ता है। हां, मैंने अपनी कुछ सहेलियों के विवाह टूटते हुए देखे हैं। मेरे विचार से विवाह किसी भी महिला के लिए फांसी का फंदा नहीं बनना चाहिए। शादी के बाद भी महिलाओं को अपनी स्वतंत्रता बनाए रखने का अधिकार मिलना चाहिए।’
अर्जुन कपूर के साथ काम करने के अनुभव को याद करते हुए भूमि कहती हैं, ‘जब मैं असिस्टेंट कास्टिंग डायरेक्टर के तौर पर काम कर रही थी, तभी से मैं अर्जुन को जानती हूं। तब वह ‘इश्कजादे’ में काम कर रहे थे। इसके बाद वह बड़े स्टार बन गए, लेकिन उनके पैर हमेशा जमीन पर ही रहे। आज भी वह उतने ही विनम्र हैं और सबकी मदद के लिए तैयार रहते हैं।’
भूमि की अगली हिट फिल्म की दर्शकों को प्रतीक्षा रहेगी।

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