दिल्ली विधानसभा के बजट सत्र के दूसरे दिन मंगलवार को मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने CAG (कैग) रिपोर्ट पेश की, जिसमें दिल्ली की विवादित शराब नीति पर बड़ा खुलासा हुआ। रिपोर्ट के अनुसार, इस नीति से सरकार को करीब ₹2000 करोड़ का घाटा हुआ। रिपोर्ट में नीति की खामियों और लाइसेंसिंग प्रक्रिया में गड़बड़ियों का जिक्र किया गया है। विशेषज्ञों द्वारा सुझाए गए सुधारों को उस वक्त के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने नजरअंदाज कर दिया था। इस मुद्दे पर सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्षी आम आदमी पार्टी (AAP) के बीच तीखी बहस देखने को मिली।
CAG रिपोर्ट पर सियासी घमासान
CAG रिपोर्ट पेश होने के बाद LG वीके सक्सेना ने कहा कि पिछली सरकार ने इस रिपोर्ट को सदन में रखने से रोका था, जिससे यह स्पष्ट होता है कि भ्रष्टाचार को छिपाने की कोशिश की गई। वहीं, BJP सांसद मनोज तिवारी ने इस रिपोर्ट को AAP के “काले कारनामों का चिट्ठा” बताया और कहा कि आम आदमी पार्टी को जनता को जवाब देना होगा।
AAP ने विधानसभा में किया हंगामा
CAG रिपोर्ट पर बहस के बीच AAP ने एक अलग मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन किया। नेता प्रतिपक्ष आतिशी ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार ने CM ऑफिस से भगत सिंह और डॉ. भीमराव अंबेडकर की तस्वीरें हटा दी हैं और उनकी जगह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर लगा दी गई है। इस मुद्दे पर AAP विधायकों ने सदन में मोदी-मोदी के नारेबाजी करने वाले BJP विधायकों का विरोध किया और जब अंबेडकर के नारे लगाए तो उन्हें पूरे दिन के लिए सस्पेंड कर दिया गया।
भाजपा का पलटवार
BJP ने AAP के आरोपों को खारिज करते हुए दावा किया कि भगत सिंह और अंबेडकर की तस्वीरें हटाई नहीं गईं, बल्कि सिर्फ उनका स्थान बदला गया है। भाजपा ने CM दफ्तर की तस्वीरें भी साझा कीं, जिससे AAP के दावों पर सवाल उठने लगे।
महिला नेतृत्व का नया दौर
दिल्ली में पहली बार दोनों प्रमुख पदों पर महिलाएं काबिज हैं—रेखा गुप्ता मुख्यमंत्री और आतिशी नेता प्रतिपक्ष बनी हैं। यह दिल्ली की राजनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव है, जहां अब महिला नेतृत्व अधिक प्रभावी रूप से उभरता दिख रहा है।
CAG रिपोर्ट के खुलासे से यह साफ है कि दिल्ली की शराब नीति में गंभीर खामियां थीं, जिससे भारी वित्तीय नुकसान हुआ। यह मामला सिर्फ वित्तीय अनियमितता का नहीं, बल्कि नीति-निर्माण में पारदर्शिता की कमी को भी उजागर करता है। विपक्ष के सवाल उठाना जायज है, लेकिन राजनीतिक हंगामे के बजाय सही मंच पर बहस होनी चाहिए ताकि जनता को सच्चाई पता चल सके।
वहीं, भगत सिंह और अंबेडकर की तस्वीरों को लेकर चल रहा विवाद सिर्फ राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश जैसा लगता है। राजनीति को आदर्शों से जोड़ना अच्छा है, लेकिन जब इसे सिर्फ प्रचार और ध्रुवीकरण का जरिया बना लिया जाए, तो यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत है।
क्या राजनीति में असली मुद्दों से ध्यान भटकाने की यह नई रणनीति है? या फिर यह लोकतांत्रिक मूल्यों की सच्ची रक्षा का प्रयास? यह सवाल दिल्ली की जनता को खुद से पूछना होगा।
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