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छत्रपति शिवाजी महाराज जयंती 2025: एक युगपुरुष की अमर गाथा

हर साल 19 फरवरी को पूरे भारत में छत्रपति शिवाजी महाराज जयंती धूमधाम से मनाई जाती है। यह दिन केवल एक ऐतिहासिक वीर की याद भर नहीं, बल्कि उनकी विचारधारा, अद्वितीय रणनीति, और भारत के स्वाभिमान की प्रतिध्वनि भी है। शिवाजी महाराज की वीरता, न्यायप्रियता और दूरदर्शिता ने उन्हें केवल मराठा साम्राज्य का ही नहीं, बल्कि समस्त भारत का नायक बना दिया।

शिवनेरी में जन्म, स्वराज्य की नींव

19 फरवरी 1630 को महाराष्ट्र के शिवनेरी किले में जन्मे शिवाजी महाराज को बचपन से ही माता जीजाबाई की सीख और गुरु दादाजी कोंडदेव के प्रशिक्षण ने एक आदर्श शासक बनने की दिशा में प्रेरित किया। उन्होंने रामायण और महाभारत से वीरता और नीति के गुण ग्रहण किए, और यही गुण उनके नेतृत्व में स्पष्ट रूप से दिखाई दिए।

तोरणा किले की पहली विजय और स्वतंत्रता की लौ

केवल 16 वर्ष की आयु में ही शिवाजी महाराज ने बीजापुर के अधीन तोरणा किले पर कब्ज़ा कर लिया था। यह न केवल उनकी पहली जीत थी, बल्कि स्वतंत्र मराठा साम्राज्य की नींव रखने की शुरुआत भी। इसके बाद उन्होंने एक-एक कर कई किलों पर विजय प्राप्त की और स्वराज्य के लिए एक सशक्त मंच तैयार किया।

रणनीति और वीरता की मिसाल – अफजल खान का वध

शिवाजी महाराज की युद्धनीति और कुशल बुद्धिमत्ता का सबसे बड़ा उदाहरण अफजल खान का वध है। बीजापुर के सुल्तान ने शिवाजी को खत्म करने के लिए अफजल खान को भेजा, लेकिन अपनी चतुराई से शिवाजी ने उसकी चाल को भांप लिया। जब अफजल खान ने छल से शिवाजी को मारने की कोशिश की, तब उन्होंने अपनी ‘बघनख’ (नाखून जैसे धारदार हथियार) से उसका अंत कर दिया। यह युद्ध इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।

आगरा से चतुराई भरी रिहाई

मुगल सम्राट औरंगजेब ने शिवाजी महाराज को आगरा बुलाकर धोखे से बंदी बना लिया। लेकिन उनके साहस और तीव्र बुद्धिमत्ता ने उन्हें इस संकट से बचा लिया। उन्होंने बीमार होने का नाटक किया और मिठाई की टोकरियों में छिपकर भाग निकले। उनकी इस योजना ने मुगलों की शक्ति को चुनौती दी और स्वतंत्रता के लिए एक नया मार्ग प्रशस्त किया।

हिंदवी स्वराज की स्थापना और राज्याभिषेक

6 जून 1674 को शिवाजी महाराज का रायगढ़ किले में भव्य राज्याभिषेक हुआ। उन्होंने अपने शासन को ‘हिंदवी स्वराज’ की संज्ञा दी और न्याय, समानता और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों पर आधारित शासन स्थापित किया। उनकी नीतियां न केवल सैन्य क्षेत्र में बल्कि प्रशासनिक और आर्थिक विकास के लिए भी प्रेरणादायक थीं।

भारत की नौसेना के जनक

शिवाजी महाराज ने समुद्री सुरक्षा को लेकर भी दूरदर्शी कदम उठाए और भारत में पहली संगठित नौसेना की स्थापना की। उन्होंने मजबूत जहाज बनाए और विदेशी ताकतों को अरब सागर में चुनौती दी। इसी कारण उन्हें ‘भारतीय नौसेना का जनक’ कहा जाता है।

महिलाओं और किसानों के रक्षक

शिवाजी महाराज ने महिलाओं का अत्यंत सम्मान किया और अपने सैनिकों को सख्त आदेश दिया कि वे किसी भी महिला को क्षति न पहुंचाएं। उनके शासनकाल में किसानों की सुरक्षा और उनकी आय को बढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया गया। उनके द्वारा लागू कर प्रणाली और प्रशासनिक सुधार आज भी आदर्श माने जाते हैं।

शिवाजी महाराज का योगदान

आज जब हम इतिहास के पन्नों को पलटते हैं, तो शिवाजी महाराज का व्यक्तित्व किसी प्रकाश स्तंभ की तरह नजर आता है। उनकी नीतियां, उनके युद्ध कौशल और स्वराज की अवधारणा आज भी प्रासंगिक हैं। वह केवल एक शासक नहीं, बल्कि भारत की आत्मा के प्रतीक हैं। उनका जीवन हमें सिखाता है कि कैसे संकल्प, साहस और दूरदृष्टि के बल पर किसी भी परिस्थिति को बदला जा सकता है।

आज के दौर में, जब स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता की बातें की जाती हैं, तब शिवाजी महाराज की शिक्षाएं और भी महत्वपूर्ण हो जाती हैं। वह केवल इतिहास के पन्नों में कैद एक योद्धा नहीं, बल्कि हर भारतीय के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।

छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती केवल एक पर्व नहीं, बल्कि उनके विचारों और उनके अदम्य साहस को आत्मसात करने का अवसर है। उनका जीवन हमें यह संदेश देता है कि सच्चे नेता वही होते हैं, जो अपने लोगों की भलाई के लिए सोचते हैं, धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देते हैं और अपने मूल्यों से कभी समझौता नहीं करते।

आज, जब हम छत्रपति शिवाजी महाराज को स्मरण करते हैं, तो हमें उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन में अपनाने का संकल्प लेना चाहिए। वे भारत की धरोहर हैं, और उनकी गाथा युगों-युगों तक गूंजती रहेगी।