पैरोल की शर्तें और सुरक्षा खर्च
सुप्रीम कोर्ट ने ताहिर को चुनाव प्रचार के लिए 12 घंटे की पैरोल दी है, लेकिन उसे रात को जेल लौटना होगा। इस दौरान हर दिन 2.47 लाख रुपए की सुरक्षा खर्च पुलिस को भुगतान करना होगा। यानी ताहिर को 6 दिनों में लगभग 15 लाख रुपए का भुगतान करना पड़ेगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि ताहिर होटल में ठहरेंगे, न कि अपने घर पर, ताकि प्रचार के दौरान कोई असामाजिक गतिविधि या विवाद न हो।
पार्षद और आरोपी का चुनावी मैदान में उतरना
ताहिर हुसैन पर दिल्ली दंगों में गंभीर आरोप हैं, जिनमें घर और ऑफिस की छत से दंगे भड़काने, IB अधिकारी अंकित शर्मा की हत्या, और लाइसेंसी पिस्टल का इस्तेमाल करना शामिल है। इसके अलावा, वह UAPA (Unlawful Activities Prevention Act) और मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में भी आरोपी हैं। हालांकि, इन गंभीर आरोपों के बावजूद, उन्हें चुनाव प्रचार के लिए पैरोल मिली है, जो एक विवादास्पद निर्णय है।
क्या यह निर्णय न्याय संगत है?
इस मामले में हाईकोर्ट ने पहले चुनाव प्रचार के लिए कस्टडी पैरोल दी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अंत में अंतरिम जमानत के लिए अपनी सहमति दी। ताहिर की वकील ने तर्क दिया कि चुनाव प्रचार के लिए सिर्फ 4 दिन बाकी हैं और उनका क्लाइंट होटल में रहकर प्रचार करेगा, ताकि कानून का उल्लंघन न हो। वहीं, दिल्ली पुलिस के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने पैरोल की याचिका का विरोध किया, यह कहते हुए कि ताहिर के खिलाफ आरोप बेहद गंभीर हैं और अगर उसे जमानत दी जाती है, तो यह अन्य कैदियों को भी चुनाव प्रचार के लिए जेल से बाहर जाने की उम्मीद दे सकता है।
पार्षद से उम्मीदवार तक का सफर
दिल्ली में हुए दंगों के दौरान ताहिर हुसैन के खिलाफ कई गंभीर आरोप लगे थे। इनमें न केवल हिंसा फैलाने का आरोप था, बल्कि एक पुलिस अधिकारी की हत्या में भी उनका नाम सामने आया था। बावजूद इसके, वह अब AIMIM के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं। इसने एक बड़ा सवाल खड़ा किया है: क्या एक आरोपी को चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने का अधिकार होना चाहिए, खासकर जब उनके खिलाफ गंभीर आरोप हों और उनका ट्रायल अभी चल रहा हो?
न्याय का क्या होगा भविष्य?
यह स्थिति न्यायपालिका के लिए भी एक चुनौती प्रस्तुत करती है। क्या यह सही है कि जेल में बंद आरोपी को चुनावी प्रचार के लिए पैरोल दी जाए, जबकि उसे लेकर ऐसे गंभीर आरोप हैं जो समाज की सुरक्षा और शांति के लिए खतरे का कारण बन सकते हैं? यह एक जटिल प्रश्न है, जो न्याय के सिद्धांतों और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के बीच संतुलन स्थापित करने की आवश्यकता को दर्शाता है।
ताहिर हुसैन का चुनाव प्रचार के लिए जेल से बाहर आना न्याय व्यवस्था और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की गंभीरता पर सवाल खड़ा करता है। जहां एक ओर उसे संविधान के तहत अपनी पसंद और अधिकार का इस्तेमाल करने का मौका मिलना चाहिए, वहीं दूसरी ओर, जो गंभीर आरोप उसके खिलाफ हैं, वे इसे न्याय संगत नहीं ठहरा सकते। यह एक ऐसा मामला है जो भविष्य में ऐसे मामलों पर प्रासंगिक निर्णयों का मार्गदर्शन करेगा।
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