बाबा ने यह भी कहा कि उन्होंने पहले कभी नाम के महत्व को नहीं समझा था, क्योंकि उनका मानना था कि काम से ही नाम आता है, न कि नाम से काम। उनका यह भी कहना था कि धर्म की स्थापना और सत्य की प्रगति के बाद ही नाम की कोई अहमियत होती है। इस दौरान उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि लोग उन्हें कई नामों से पुकारते हैं, जैसे राघव, माधव, और एक तांत्रिक ने उन्हें बटुक भैरव भी कहा था।
IIT से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग करने के बाद बाबा ने लाखों की नौकरी छोड़कर आध्यात्मिक मार्ग को अपनाया। उन्होंने महाकुंभ में कहा कि वह न केवल कल्कि अवतार हैं, बल्कि वह अपने कर्मों से इस सत्य को साबित करेंगे। उनकी यह बात यह भी स्पष्ट करती है कि वह अपने जीवन को धर्म और सत्य की स्थापना के लिए समर्पित करने का दावा करते हैं।
क्या यह सच है?
इस तरह के दावे बहुत जटिल होते हैं, और इसे विश्वास से परे समझा जा सकता है। जहां एक ओर बाबा का विश्वास और उनकी आध्यात्मिक यात्रा प्रशंसा के योग्य हो सकती है, वहीं उनके अवतार होने के दावे पर सवाल उठाए जा सकते हैं। धार्मिक आस्थाओं के संदर्भ में इस प्रकार के दावे जनमानस में उलझन पैदा करते हैं और कभी-कभी यह भ्रमित कर सकते हैं।
सच या झूठ का निर्णय समय और कर्म से ही होगा, जैसा कि बाबा ने खुद कहा। उनका यह कहना कि नाम से ज्यादा काम मायने रखता है, बहुत सटीक और प्रेरणादायक है। यह हमें यह याद दिलाता है कि अपने कार्यों के माध्यम से ही हमें अपनी पहचान बनानी चाहिए, न कि केवल शब्दों और नामों के जरिए। चाहे हम बाबा के दावे को स्वीकार करें या न करें, उनका संदेश यह है कि जीवन में कर्म ही सबकुछ हैं, और नाम बस एक प्रभावशाली परिणाम है।
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