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Raj Kapoor 100

Raj Kapoor : सदी का शोमैन, भारत-रूस दोस्ती का अमर प्रतीक

Raj Kapoor : भारतीय सिनेमा के स्वर्णिम युग के स्तंभ, राज कपूर, न केवल भारत बल्कि दुनिया भर में अपनी छाप छोड़ने वाले कालजयी कलाकार थे। 14 दिसंबर 2024 को उनकी 100वीं जयंती के अवसर पर, उनका जीवन और योगदान याद करना न केवल भारतीय सिनेमा के प्रति कृतज्ञता प्रकट करना है, बल्कि भारत और रूस के बीच के रिश्ते को मजबूती देने वाले इस शोमैन की विरासत का सम्मान भी है।

राज कपूर और रूस का अद्वितीय रिश्ता

1950 के दशक में, जब भारतीय सिनेमा सीमाओं को पार कर अपनी पहचान बना रहा था, राज कपूर ने अपनी फिल्मों के माध्यम से एक नया इतिहास रचा। उनकी फिल्में जैसे ‘आवारा’ और ‘श्री 420’ ने न केवल भारत में बल्कि रूस (तत्कालीन सोवियत संघ) में भी अपार लोकप्रियता हासिल की। खासकर, ‘आवारा हूँ’ और ‘मेरा जूता है जापानी’ जैसे गीतों ने राज कपूर को रूसी दर्शकों के दिलों में अमर कर दिया।

राज कपूर को रूस में एक “हीरो” के रूप में देखा गया। उनकी फिल्मों की कहानी, जिसमें सादगी, मानवीय मूल्यों, और सामाजिक न्याय का संदेश होता था, रूसी दर्शकों से सीधे जुड़ गई। उनके किरदारों की मासूमियत और संघर्षशीलता सोवियत समाज की मानसिकता के साथ मेल खाती थी। शायद यही वजह थी कि राज कपूर को रूस में “भारतीय चार्ली चैपलिन” कहा गया।

रूस की तीसरी सबसे लोकप्रिय विदेशी फिल्म

आज के पीढ़ी को जानकर हैरानी होगी कि 1951 में रिलीज हुई ‘आवारा’ रूस में इतनी लोकप्रिय हुई कि इसने 40 लाख टिकटों की बिक्री के साथ इतिहास रच दिया। यह सोवियत रूस में तीसरी सबसे ज्यादा देखी जाने वाली विदेशी फिल्म बन गई। यहां तक कि रूस के राष्ट्रपति बोरिस येल्त्सिन और मॉस्को के मेयर यूरी लुज़कोव जैसे बड़े नेताओं को भी इस फिल्म के गाने गुनगुनाते सुना गया।

राज कपूर की लोकप्रियता केवल उनकी फिल्मों तक सीमित नहीं थी। उन्हें भारतीय संस्कृति के प्रतीक के रूप में देखा गया। रूस में वे शिव और पयोग (योग) के साथ भारतीय संस्कृति के तीन प्रमुख प्रतीकों में से एक माने जाते थे।

‘मेरा जूता है जापानी’: भारत-रूस मैत्री का प्रतीक

‘श्री 420’ का यह गीत, जिसे शैलेन्द्र ने लिखा और मुकेश ने गाया, आज भी रूस में बेहद लोकप्रिय है। इस गाने के बोल: “मेरा जूता है जापानी, ये पतलून इंग्लिस्तानी, सर पे लाल टोपी रूसी, फिर भी दिल है हिंदुस्तानी” ने भारत-रूस दोस्ती को एक नया आयाम दिया। लाल टोपी, जो रूसी पहचान का प्रतीक थी, और हिंदुस्तानी दिल का यह मेल, दोनों देशों के रिश्ते का सार बन गया।

राज कपूर की फिल्मों की लोकप्रियता सिर्फ भारत और रूस तक सीमित नहीं रही। ताशकंद, उज्बेकिस्तान जैसे स्थानों पर उनके नाम से रेस्तरां खुले। तुर्की में उनकी फिल्म ‘आवारा’ पर आधारित टेलीविजन सीरियल बनाए गए। यहां तक कि अमेरिका और अफ्रीका में भी उनकी फिल्मों का पुनर्मूल्यांकन हुआ। उनकी फिल्मों ने भारतीय और विदेशी दर्शकों को यह संदेश दिया कि जीवन में संघर्ष के बाद भी आशा और अच्छाई की जीत होती है।

100 साल बाद भी अमर राज कपूर

आज, 100 साल बाद भी राज कपूर न केवल एक अभिनेता, निर्देशक और निर्माता के रूप में याद किए जाते हैं, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति के रूप में भी जिनकी कला ने संस्कृतियों और देशों के बीच पुल का काम किया। उनकी फिल्मों ने यह साबित किया कि सिनेमा की भाषा सार्वभौमिक है और यह दिलों को जोड़ने की ताकत रखती है।उनकी 100वीं जयंती पर, हम राज कपूर को नमन करते हैं, जिन्होंने अपने “हिंदुस्तानी दिल” से पूरी दुनिया को जीता और भारतीय सिनेमा को वैश्विक पहचान दिलाई।