Sharda Sinha: बिहार की मशहूर स्वर कोकिला शारदा सिन्हा छठ पूजा से पहले अपनी खराब सेहत की खबर के बाद गूगल पर ट्रेंड कर रही हैं। सिन्हा की हालत बिगड़ने के बाद उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया है, जिसके चलते उनके बेटे ने उनके ठीक होने की प्रार्थना की है। हाल ही में उनके पति बृजकिशोर सिन्हा के निधन की खबर सामने आई थी। उन्हें दिल्ली एम्स अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
उनके बेटे अंशुमान ने हाल ही में अपने यूट्यूब चैनल पर गायिका के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी दी, जिसमें उन्होंने पुष्टि की कि उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया है। उन्होंने सभी से अपनी मां के ठीक होने के लिए प्रार्थना करने का आग्रह भी किया। उन्होंने कहा, “यह सच है, मेरी मां वेंटिलेटर पर हैं। प्रार्थना करते रहें। मेरी मां कड़ी लड़ाई लड़ रही हैं। यह बहुत, बहुत मुश्किल है। बस प्रार्थना करें कि वह इससे बाहर आ जाएं। यह एक वास्तविक अपडेट है। मैं अभी उनसे मिला हूं। छठी मैया उन्हें बचाए। फिलहाल, जब डॉक्टर मिले, तो उन्होंने कहा कि मामला अचानक बिगड़ गया है। हर कोई कोशिश कर रहा है।”
आपको बता दें कि शारदा सिन्हा का नाम सुनते ही छठ पर्व के मधुर गीत कानों में गूंजने लगते हैं। अपनी सुमधुर आवाज़ और भावपूर्ण गायकी के लिए जानी जाने वाली शारदा सिन्हा ने लोक संगीत को नई पहचान दी है। उनकी गायकी न केवल बिहार और उत्तर प्रदेश में प्रसिद्ध है, बल्कि देशभर में छठ महापर्व और भोजपुरी संस्कृति से जुड़ी हुई है। आइए जानते हैं इस महान लोक गायिका के जीवन और उनके संगीत से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में।
प्रारंभिक जीवन और संगीत की शिक्षा
शारदा सिन्हा का जन्म 1 अक्टूबर 1952 को बिहार के समस्तीपुर जिले में हुआ था। उनका झुकाव बचपन से ही संगीत की ओर था। उन्होंने अपनी संगीत शिक्षा पटना विश्वविद्यालय से प्राप्त की और संगीत में अपनी रुचि को एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया। शारदा सिन्हा ने भारतीय शास्त्रीय संगीत की बारीकियों को समझा और लोक संगीत में इसे बड़े ही सहज तरीके से प्रस्तुत किया। उनकी गायकी में बिहार की मिट्टी की खुशबू और पारंपरिक संगीत की मिठास साफ झलकती है।
छठ गीतों की लोकप्रियता
शारदा सिन्हा को सबसे अधिक प्रसिद्धि उनके छठ गीतों से मिली। छठ पर्व के दौरान उनके गीत हर गली, हर घर, और हर घाट पर सुनाई देते हैं। “पहिले पहिल हम नईका बानी छठी मइया”, “केलवा के पात पर उगेलन सूरज देव”, और “हे गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो” जैसे गीत शारदा सिन्हा की आवाज़ में अमर हो गए हैं। उनके गीतों में छठ पूजा की भक्ति, भावना, और बिहार की सांस्कृतिक परंपराओं का जीवंत चित्रण होता है। यही कारण है कि छठ पर्व उनकी आवाज़ के बिना अधूरा माना जाता है।
लोक संगीत को दी नई पहचान
शारदा सिन्हा ने सिर्फ छठ गीत ही नहीं, बल्कि भोजपुरी, मैथिली और मगही लोक संगीत को भी बढ़ावा दिया। उन्होंने पारंपरिक विवाह गीतों और फसल कटाई के गीतों को भी अपनी आवाज़ दी है। उनकी कोशिश रही है कि बिहार की लोक संस्कृति और संगीत को देश और दुनिया तक पहुंचाया जाए। शारदा सिन्हा की आवाज़ में एक ऐसी मिठास और गहराई है, जो लोक संगीत को जीवंत कर देती है। उन्होंने अपने संगीत के माध्यम से बिहार की सांस्कृतिक विरासत को संजोया और उसे आधुनिक पीढ़ी तक पहुंचाया।
सम्मान और उपलब्धियां
शारदा सिन्हा के योगदान को न केवल लोक संगीत प्रेमियों ने सराहा है, बल्कि उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर भी सम्मानित किया गया है। उन्हें 2018 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया, जो देश का तीसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है। इससे पहले उन्हें पद्म श्री (1991) और महिला शिरोमणि पुरस्कार जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। उनकी गायकी ने न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी भारतीय संस्कृति को सम्मान दिलाया है।
शारदा सिन्हा और समाज
शारदा सिन्हा न केवल एक महान गायिका हैं, बल्कि उन्होंने समाजसेवा में भी अपनी भूमिका निभाई है। वे महिला सशक्तिकरण और बालिका शिक्षा के लिए काम करती हैं। उन्होंने अपने संगीत से जुड़े संदेशों के माध्यम से सामाजिक सुधार और जागरूकता फैलाने का भी प्रयास किया है।
शारदा सिन्हा एक ऐसी अद्भुत कलाकार हैं, जिन्होंने अपनी संगीत साधना और मेहनत से भारतीय लोक संगीत को एक नई पहचान दी। उनकी आवाज़ छठ पर्व का अभिन्न हिस्सा बन गई है और आने वाली पीढ़ियों को बिहार की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से जोड़ने का काम कर रही है। शारदा सिन्हा की संगीत यात्रा एक प्रेरणा है, जो हमें हमारी परंपराओं और संस्कृति से जुड़े रहने का संदेश देती है।
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