महाराष्ट्र विधानसभा के डिप्टी स्पीकर नरहरी झिरवल और विधायक हीरामन खोसकर ने शुक्रवार को मंत्रालय की तीसरी मंजिल से कूदकर अपनी जान जोखिम में डाल दी। इस सनसनीखेज घटना के पीछे धनगर समाज को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने का फैसला है, जिसे लेकर दोनों आदिवासी विधायक नाराज थे। हालांकि, मंत्रालय की सुरक्षा के चलते नीचे लगे जाल ने उनकी जान बचा ली, लेकिन उनकी इस कार्रवाई ने प्रदेश में राजनीतिक हलचल मचा दी है।
क्या है मामला?
झिरवल, जो उपमुख्यमंत्री अजीत पवार गुट के विधायक हैं, और खोसकर ने महाराष्ट्र सरकार द्वारा धनगर समुदाय को ST का दर्जा देने के फैसले का कड़ा विरोध किया है। उनका कहना है कि यह आदिवासी समुदाय के आरक्षण को कमजोर करने की साजिश है। शुक्रवार को उन्होंने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से मुलाकात भी की, लेकिन जब उनकी मांगों पर कोई सकारात्मक निर्णय नहीं लिया गया, तो झिरवल ने अपने विरोध के चरम पर जाकर मंत्रालय की तीसरी मंजिल से छलांग लगा दी।
झिरवल ने दी थी चेतावनी
मुलाकात से पहले ही झिरवल ने स्पष्ट कर दिया था कि यदि उनकी बात नहीं सुनी गई, तो वे ‘प्लान बी’ को लागू करेंगे। और यही हुआ—जब सरकार ने उनकी बातों को नजरअंदाज किया, तो उन्होंने अपना विरोध बेहद खतरनाक तरीके से जताया। उनकी इस कार्रवाई से साफ है कि महाराष्ट्र में आरक्षण को लेकर असंतोष गहरा हो चुका है और आने वाले दिनों में यह मुद्दा और भड़क सकता है।
धनगर समाज का संघर्ष और झिरवल की चिंता
महाराष्ट्र में धनगर समुदाय को OBC का दर्जा मिला हुआ है, लेकिन वे अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल होने की मांग कर रहे हैं। राज्य सरकार ने उनकी इस मांग को मानने की ओर कदम बढ़ाया है, लेकिन आदिवासी समुदाय, जिसका आरक्षण धनगरों के ST में शामिल होने से प्रभावित होगा, इस फैसले का विरोध कर रहा है। झिरवल जैसे आदिवासी नेताओं का कहना है कि इस फैसले से आदिवासी समुदाय का हक छिन जाएगा और उनकी सामाजिक स्थिति कमजोर हो जाएगी।
क्या कहती है ये घटना?
यह घटना सिर्फ आरक्षण की लड़ाई नहीं, बल्कि महाराष्ट्र की राजनीति में उभरते असंतोष का प्रतीक है। जब विधायक इस हद तक जाकर अपनी जान जोखिम में डाल सकते हैं, तो यह साफ संकेत है कि सरकार से उनका विश्वास टूट चुका है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या सरकार इस असंतोष को शांत करने में सफल हो पाएगी, या यह संघर्ष और बढ़ेगा?
आरक्षण का मुद्दा न केवल राजनीतिक बल्कि सामाजिक संतुलन का भी है। धनगरों को ST में शामिल करने से आदिवासी समुदाय की चिंताएं वाजिब हैं, लेकिन इसका समाधान सरकार को ठोस और संवेदनशील तरीके से निकालना होगा। विधायकों द्वारा इस तरह की जानलेवा कार्रवाई करना किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरनाक संकेत है। सरकार को चाहिए कि वह बातचीत का रास्ता अपनाकर इस मसले का समाधान निकाले, ताकि प्रदेश में शांति बनी रहे और ऐसे कदम फिर न उठाए जाएं।
क्या महाराष्ट्र की सरकार इस असंतोष को संभाल पाएगी, या संघर्ष और गहराएगा?
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