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मंदसौर में स्थित अष्टमुखी पशुपतिनाथ मंदिर का रहस्यी इतिहास

हमारे देश में कई ऐसे मंदिर हैं जहां लोगों की श्रद्धा आस्था से बढ़कर और कोई चीज नहीं। ये वहां का चमत्कार ही है जो भक्तों को उनके पास खींच लाता है। ऐसे ही चमत्कारिक मंदिरों में से एक है मध्यप्रदेश में स्थित अष्ट मुखी पशुपतिनाथ मन्दिर।

पशुपतिनाथ मन्दिर भारत देश के मध्य प्रदेश राज्य के मन्दसौर जिले में स्थित एक प्राचीन मन्दिर है। यह मन्दसौर नगर में शिवना नदी के किनारे स्थित है। पशुपतिनाथ की मूर्ति पूरे विश्व में अद्वितीय प्रतिमा है यह प्रतिमा इस संसार की एक मात्र प्रतिमा है जिसके आठ मुख है और जो अलग-अलग मुद्रा में दिखाई देते है इस प्रतिमा की भी अपनी कहानी है।

मंदसौर में मौजूद भगवान भोलेनाथ का पशुपतिनाथ मंदिर पूरे देश में प्रसिद्ध है। यहां भगवान शिव की सबसे बड़ी अष्टमुखी प्रतिमा मौजूद है, जिसके दर्शन के लिए भक्त दूर-दूर से यहां पहुंचते हैं। 80 साल पहले मंदसौर की शिवना नदी में मिली यह मूर्ति दो हजार साल पुरानी बताई गई है। 7 फीट ऊंजी और ढाई मीटर गोलाकार मूर्ति मंदसौर के अलावा पूरे विश्व में कहीं नहीं है।

अष्टमुखी प्रतिमा का रहस्य

इस अद्भुत प्रतिमा, जो 7 फीट ऊँची और ढाई मीटर गोलाकार है, में भगवान शिव के आठ मुख हैं। ये मुख जीवन की चारों अवस्थाओं – बाल्यकाल, किशोरावस्था, युवावस्था और प्रौढ़ावस्था – को दर्शाते हैं। 8 मुख वाली यह प्रतिमा दो भागों में बंटी है, जिसे अब पुरातत्व विभाग में संरक्षित धरोहर की श्रेणी में लिया है ।

मान्यता है कि भगवान पशुपतिनाथ के दर्शन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। विशेष रूप से सावन महीने में यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है।

सावन के महीने में मिलता है खास मौका

इस धरोहर को राज्य सरकार के पर्यटन विकास निगम ने अपने अधीन कर मंदसौर शहर को पवित्र नगरी घोषित किया है ! पुरातत्व विभाग के निर्देश के बाद मंदिर की प्रबंध समिति ने प्रतिमा पर सार्वजनिक जलाभिषेक और केमिकल युक्त पूजा सामग्री चढ़ाने पर रोक लगा दी है। हालांकि सावन महीने में यहां श्रद्धालुओं को जलाभिषेक करने की विशेष अनुमति दी जाती है। हर साल कार्तिक माह की पूर्णिमा पर दीपदान भी होता है। इस मौके पर देश और दुनिया भर के श्रद्धालु हर यहां पहुंचते हैं। कार्तिक माह की पूर्णिमा पर यहां15 दिवसीय मेले आयोजन भी होता, जिसमें श्रद्धालु उत्साह के साथ शामिल होते हैं।

प्रतिमा का इतिहास

कहते हैं कि ये अद्भुत मुर्ति शिवना नदी में कपड़े धोते वक्त सन 1940 में शहर के उदाजी धोबी नामक व्यक्ति को दिखाई दी थी। इसके बाद रेत में दबी इस प्रतिमा को तत्कालीन रियासत के नरेश जीवाजी राव सिंधिया ने नदी से बाहर निकलवाया था। नदी से बाहर निकली इस प्रतिमा के 8 मुख हैं। दो भागों में बटी इस प्रतिमा के चार ऊपर और चार नीचे के मुख जीवन की चारों अवस्थाओं को दर्शाते हैं। इस नदी से एक और शहस्त्र शिवलिंग की प्रतिमा भी मिली थी। जिसके बाद लिहाजा अब भव्य मंदिर का निर्माण किया गया है । पुरातात्विक और धार्मिक महत्व की इस धरोहर वाले मंदिर के जीर्णोद्धार का काम भी जारी है।

उज्जैन में अक्टूबर में महाकाल महालोक का लोकार्पण हुआ था और यह इतना भव्य बना कि इसकी अलौकिक छटा की चर्चाएं देश की सीमाओं को भी पार कर गई हैं। अब तो विदेशी भी महाकाल लोक का दीदार करने पहुंचते हैं।