दक्षिण के मीनाक्षी मंदिर में मां के चरणों को प्रति वर्ष चैती नवरात्रि में “पीटर पादुकम” से श्रृंगारित किया जाता है।
यह पीटर पादुकम क्या है?
दक्षिण के विश्व प्रसिद्ध मदुरई के मीनाक्षी मंदिर से जुड़ी एक दंतकथा आज भी प्रचलित है। जिसका सबूत है, प्रति चैती नवरात्रि में मां के चरणों को “पीटर पादुकम” से सजाया जाता है।
सन 1812 से 1828 के समय काल की बात है ।उस वक्त देश में अंग्रेजों का राज था।उस वक्त मदुरई के कलेक्टर थे, रूस पीटर। वे जन्म से क्रिश्चियन होने के बावजूद भी सभी धर्म को पूरा सम्मान देते थे। उस वक्त वह मीनाक्षी मंदिर के व्यवस्थापक पद पर भी थे। उनके सर्वधर्म समभाव के कारण स्थानीय लोगों ने उनका नाम पीटर पांडियन रख दिया था। चूंकि उस वक्त आज की तरह गाडियां नही थी, अतः पीटर अपने दफ्तर घोड़े पर जाते थे।उनके इस मार्ग में ही मीनाक्षी मां का मंदिर पड़ता था।वे मंदिर के पास से गुजरते वक्त घोड़े से उतर जाते थे, और हैट, जूते उतारकर मंदिर का मार्ग पैदल पार करते थे, इस प्रकार वे रोज मां को नमन करते थे।
दंतकथा के अनुसार कहा जाता है कि एक दिन मदुरई में बहुत ही धुआंधार बारिश हुई। वातावरण इतना भयानक था, कि कभी भी कुछ भी हो सकता था। जब कलेक्टर अपने बंगले में रात को सो रहे थे, तब अचानक घुंघरू की आवाज उन्हें सुनाई दी। वे आवाज सुनकर जाग गए और आवाज की ओर जब गए तो उन्होंने एक छोटी सी कन्या को पट्टू वस्त्रम यानी रेशमी वस्त्रम और कीमती गहनों को पहने हुए पाया। इस कन्या ने उन्हें कहा कि ,”पीटर इस तरफ आ जाओ” और ऐसे कहकर उन्होंने अपनी तरफ बुला लिया। जैसे ही पीटर उनके पीछे-पीछे बाहर निकले तो पीछे ही बिजली गिरने के कारण उनका पूरा बंगला जलकर खाक हो गया था,जब उन्होंने घूम कर देखा तो वह कन्या वहां से अदृश्य हो गई थी। कलेक्टर को लगा की माता की भक्ति के कारण मां ने स्वयं आकर उनकी जान बचाई है। उसी वक्त उन्होंने पुजारी से सलाह लेकर मीनाक्षी मां को कुछ भेंट करने की इच्छा व्यक्त की। उन्होंने जब उस कन्या को देखा था तो उसके पैर नंगे थे, तो उन्होंने सोने की पादुकाएं बनवाई ।जो कुल 56 तोले की बनाई गई, जिसमें 412 मानिक, 72 नीलमणि, और 80 हीरे जड़े हुए थे ।उन्होंने यह पादुकाएं मां को अर्पण की। लोग आज भी उसे पीटर पादुकम के नाम से जानते हैं ,और हर चैत्री नवरात्रि के उत्सव में मीनाक्षी मंदिर में देवी मीनाक्षी की प्रतिमा को इस पादुका से श्रृंगारित किया जाता है।
कहा जाता है कि आज भी उस ब्रिटिश कलेक्टर की वंशज वर्ष में एक बार मदुरई में आकर मीनाक्षी मां के दर्शन करते हैं।
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