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चुनावी चहल पहल: 50 के दशक में कैसे बनते थे चुनावी पोस्टर्स?

चुनावी चहल पहल में आज बात करते हैं, 50 से 60वें दशक की।

आज चुनावी माहौल डिजिटल हो गया है। पोस्टर्स फ्री डिजिटल हो गए हैं फ्लेक्स बैनर्स बनने लगे हैं विशाल पोस्टर्स कंप्यूटर में तैयार होते हैं और मशीनों द्वारा उनकी छपाई की जाती है और बड़े-बड़े होर्डिंग्स पर इन छपे हुए पोस्टर्स को चिपका दिया जाता है सोशल मीडिया में भी यह पोस्टर्स घूमने लगे हैं। आज इंटरनेट माध्यमों के जरिए चुनावी प्रचार युद्ध किया जाता है।वही हाई फाई हो चुका मीडिया भी पूरा दिन चुनावी बहस और लोगों का मिज़ाज दर्शाते रहते है।लेकिन 50,60 के दशक का जमाना कुछ और था।

क्या आप जानते हैं, 50 और 60के दशक में चुनावी पोस्टर कैसे बनाए जाते थे? 50 से 60के दशक में बड़े-बड़े स्पीकर और माइक समेत विविध सामग्रियां प्रचार हेतु एक जगह से दूसरी जगह ले जाई जाती थी। चुनावी प्रचार में पोस्टर वॉर भी बहुत मायने रखती थी। नेताओं द्वारा खास लोगों की टीम रहती थी, और विविध विस्तारों के लोगों को पोस्टर्स बनाने की कामगीरी दी जाती थी।

आपको पता है…..यह पोस्टर्स हाथ से बनाए जाते थे! इन्हें चिपकाने के लिए कार्यकर्ताओं का उपयोग किया जाता था।ये कार्यकर्ता पूरी रात पोस्टर्स चिपकाने में लगाते थे। अखबारों और प्रिंटिंग माध्यमों के जरिए विविध पार्टियों द्वारा अपना प्रचार किया जाता था। इसके अलावा बड़े नेताओं और अपक्ष उम्मीदवारों के इंटरव्यूज छापे जाते थे। पोस्टर्स हाथ से प्रिंट किए जाने की वजह से अखबारों में इन्हें सुबह करीब 3:00 बजे से ही जमाना शुरू कर दिया जाता था ।यह बहुत ही बड़ी साइज के होते थे। यूं us samay चुनाव प्रचार के लिए कार्यकर्ताओं को बहुत ही मेहनत और समय देना पड़ता था।

कैसी लगी आज की चुनावी चहल पहल की बात? अपना प्रतिभाव जरूर दें।