जम्मू-कश्मीर का स्पेशल स्टेटस यानी Article 370 हटाना सही था या नहीं, इस पर सुप्रीम कोर्ट आज 11 दिसंबर को फैसला सुना दिया है। इसमें कोर्ट ने इस फैसले को वैध ठहराया है और उसे चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि विधानसभा यदि भंग है और वहां राष्ट्रपति शासन लगा था तो फिर उनके पास यह अधिकार था कि वे आर्टिकल 370 पर फैसला लें। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र शासित प्रदेश के रूप में लद्दाख के पुनर्गठन को बरकरार रखा।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “यह जम्मू, कश्मीर और लद्दाख में हमारी बहनों और भाइयों के लिए आशा, प्रगति और एकता की एक शानदार घोषणा है। न्यायालय ने, अपने गहन ज्ञान से, एकता के मूल सार को मजबूत किया है जिसे हम, भारतीय होने के नाते, बाकी सब से ऊपर प्रिय मानते हैं और संजोते हैं।”
इस फैसले को लेकर AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी बयान जारी किया है। उन्होंने अपना बयान देते हुए कहा, “हम इस फैसले से संतुष्ट नहीं है… कश्मीर हमेशा से भारत का एक अटूट हिस्सा रहा है… अब आने वाले दिनों में भाजपा को कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद और मुंबई के केंद्र शाषित प्रदेश बनाने से कोई नहीं रोक सकेगा। इसका नुकसान सबसे ज़्यादा डोगरा और लद्दाख के बुद्धिस्ट को होगा…”
अस्थायी था अनुच्छेद 370
अनुच्छेद 370 की वैधता पर केंद्र के निर्णय को जारी रखते हुए, CJI ने कहा कि J & K के संविधान विधानसभा का कभी भी एक स्थायी निकाय नहीं था और जब यह मौजूद होना बंद हो गया, तो विशेष स्थिति जिसके लिए अनुच्छेद 370 का अस्तित्व समाप्त हो गया था।
सीजेआई ने कहा फैसले को लेकर कहा कि जम्मू और कश्मीर के पास देश के अन्य राज्यों से अलग आंतरिक संप्रभुता नहीं है और “भारतीय संविधान के सभी प्रावधान J & K पर लागू किए जा सकते हैं।” उन्होंने आगे कहा, “हम संविधान के अनुच्छेद 370 को मान्य के रूप में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के लिए राष्ट्रपति पद की शक्ति का अभ्यास करते हैं।”
जस्टिस स्क कौल ने सीजेआई के साथ फैसले के बारे में कहा कि अनुच्छेद 370 का उद्देश्य धीरे -धीरे जम्मू और कश्मीर को अन्य भारतीय राज्यों के साथ सममूल्य पर लाना था। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 में J & K संविधान विधानसभा की सिफारिश की आवश्यकता को इस तरह से नहीं पढ़ा जा सकता है जो बड़े इरादे को निरर्थक बनाता है।
2019 में किया गया फैसला
मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में 5 अगस्त 2019 को आर्टिकल 370 खत्म कर दिया था।
मामले पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने सुनवाई की थी। सुनवाई 16 दिन चली थी। 5 सितंबर को सुनवाई खत्म होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।
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