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पश्चिम बंगाल का लोकनृत्य और उनका सामाजिक महत्व

लोक शब्द का अर्थ ग्राम या जनपदीय समझा जाता है। परन्तु व्यापक रूप में इसका अर्थ गाँव, नगरों ,जंगलों, पहाड़ों और किसी टापू पर बसा वह मानव समाज जो अपनी प्रथा, परंपरा, रीति-रिवाजों और नैसर्गिक विश्वासों में आस्थाशील होने के साथ ही सीमित संसाधनों, अल्प शिक्षित जनता लोक का प्रतिनिधित्व करता है। प्रकृति, जनजातियों का ओढना-बिछौना है | प्रकृतिक जीवन उनका गहना है। प्रकृति के बीना उनका जीवन अधुरा है। इसलिए आज भी वे जंगल पहाडियों में रहना पसंद करते हैं और उनके परंपरा और संस्कार भिन्न होते हैं। नृत्यगान के बिना लोकजीवन अछूता और अधूरा है।

भारत के पूर्वी क्षेत्र में स्थित है एक राज्य – पश्चिम बंगाल । इसके दक्षिण में दुनिया की सबसे बडी खाडी है ” बंगाल की खाडी” । वैसे तो यह प्रदेश कई मायनों में समृद्ध है , चाहे वो इस राज्य का इतिहास हो , इसकी राजनीति हो या भूगोल ही क्यों न हो लेकिन आज हम यहां के लोक नृत्य के प्रकारों की बात करेगैं। बंगाल के विभिन्न प्रकार के लोकनृत्य मुख्य रुप से उत्सव, समारोह और धार्मिक कार्यक्रमों के दौरान किए जाते हैं। ग्रामीण बंगाल की विभिन्न जनजातियों और जातीय समूहों की अपनी विशिष्ट लोक कला है जो कृषि और पौराणिक वृतांतों से जुडी है। युद्ध संबंधी नृत्य विशिष्ट रूप से रामायण और महाभारत जैसे महान महाकाव्यों के वृतांतों को दर्शातें हैं।

ये लोक नृत्य वर्ष भर मैले त्योहारों और धार्मिक कार्यक्रमों में विभिन्न अवसरों के प्रतीक के रूप में प्रदर्शित किए जातां हैं। पश्चिम बंगाल मे सबसे आश्चर्यजनक रूप से निर्मित ,विश्व बिख्यात पुल ” हावडा ब्रिज” है ।अनेक प्रकार के देव देवताओं की कलात्मक मूर्तियों और वास्तु शिल्प से समृद्ध मंदिरों से यह शहर सुसज्जित है।पर्यटकों की भीड से यह शहर साल भर भरा रहता है।त्योहारों के अवसर पर मैले लगे रहतें है और ” लोक नृत्य ” की इसमें बहुत बड़ी भूमिका होती है। नृत्य के माध्यम से त्योहारों को बडे उत्साह और जोश के साथ मनाया जाता हैं जो नृत्य के माध्यम से त्योहारों मे निहित कथाओं को व्यक्त करते हैं। पश्चिम बंगाल के विभिन्न लोक नृत्य मुख्य रूप से राज्य की समृद्ध संस्कृति को दर्शाते हैं। इस राज्य के विभिन्न लोक नृत्य अपने उत्साह और सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध हैं। नृत्य , आदिवासी जीवन शैली का एक हिस्सा है।

पश्चिम बंगाल के लोकनृत्य राज्य के विभिन्न हिस्सों मे होतें हैं और विभिन्न अवसरों के दौरान महान उत्सव का माहौल बनाते हैं। यहाँ के कुछ विशिष्ट नृत्यों का वर्णन निन्म प्रकार से है।

ब्रिता नृत्य

ब्रिता नृत्य, जिसे ‘ वृता नृत्य ‘ भी कहा जाता है ,पश्चिम बंगाल के लोकनृत्य में से एक है। यह नृत्य मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल के महिलाओं द्वारा किया जाने वाला मंगलाचरण है। यह नृत्य बंगाली संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है और आमतौर पर त्योहारों के मौसम में किया जाता है। विशेषत: बांग्ला नववर्ष के दौरान। ट्रेक के साथ सिंक्रनाइज़ किए गए जटिल फुटवर्क और हाथो से किए गए जटिल इशारे इस नृत्य को विशिष्ट ना देते हैं। पारंपरिक परिधान पहने कलाकार , जिसमें बैंगनी धारवाली सफेद साडी के साथ चुडियाँ और हार पहनकर कलाकार दर्शकों के समक्ष अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। ब्रिता नृत्य आनंद के एक रूप से कहीं अधिक है यह पश्चिम बंगाल की संस्कृतिक पहचान का एक अनिवार्य अंग है। यह जगह के ऐतिहासिक अतीत को बनाए रखने के लिए कार्य करता है। बृता नृत्य प्रदर्शन के माध्यम से , युवा पीढी को अपने पूर्वजों के रीति-रिवाजों और परंपराओं के साथ जोडता है। यह सुनिश्चित करता है कि जीवन शैली समय के साथ संरक्षित रहे।

छऊ नृत्य

पश्चिम बंगाल राज्य में किया जानेवाला छऊ नृत्य की एक भिन्न विशेषता है। यह भारत के प्रसिद्ध आदिवासी मार्शल नृत्यों में से एक है | चूंकि लोकनृत्य के इस रूप की उत्पत्ति पश्चिम बंगाल राज्य के पुरूलिया राज्य में होने की कल्पना की जाती है, इसलिए इसे बंगाल में पुरूलिया छऊ के नाम से भी जाना जाता है। इसे मुखौटा नृत्य भी कहते है जो बंगाल में केवल पुरुष नर्तकों के द्वारा किया जाता है ।यह पौराणिक नृत्य भी है, क्योकि यह मुख्य रूप से महाभारत और रामायण महाकाव्यों के विभिन्न प्रसंगों पर आधारित है। बांगला फिल्मों में भी इस नृत्य का प्रयोग किया जाता है।

नबन्ना नृत्य

नबन्ना एक आनुष्ठानिक नृत्य है। जिसे पतझड की फसल के बाद किया जाता है। यह फसल की कटाई से जुडे एक धार्मिक समारोह का हिस्सा है | यह नृत्य एक सफल फसल के बाद किसान परिवार की खुशियों की अभिव्यक्ति भी है।

गंभीरा नृत्य

गंभीरा नृत्य पश्चिम बंगाल के लोकनृत्यों में से एक है। जिसने इस राज्य की संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान हासिल किया है।गंभीरा नृत्य बंगाल के सबसे प्रसिद्ध भक्ति लोकनृत्यों मे से एक का उदाहरण है ।यह लोकनृत्य विशेष रूप से चरक उत्सव के दौरान किया जाता हैऔर यह उत्तर बंगालके विशेष रूप से मालदा जिले में बहुत प्रसिद्ध है। यह एक एकल प्रदर्शन है जिसमें प्रतिभागी नृत्य करते समय मुखौटा पहनता है ।

ढ्चुू नृत्य

यह नृत्य बीरभूम जिले में बहुत प्रसिद्ध है | यह त्योहार पोष ( दिसम्बर और जनवरी के दौरान) के महिने में मनाया जाता है । इस नृत्य को महिला और पुरुष दोनों करते हैं। यह पुरूलिया और मैदिनीपुर में भी लोकप्रिय है। यह फसल कटाई के त्योहार के
समय किया जाता है। ताकि आनेवाली फसल का जश्न मनाया जा सके।

संथाल नृत्य

यह नृत्य पश्चिम बंगाल की बहुत ही लोकप्रिय लौक नृत्य है। यह संथाल जनजातियों के द्वारा सभी विशेष त्योहारों और अवसरों पर किया जानेवाला एक समूह नृत्य है। यह नृत्य न केवल स्थानीय जनजातियों की संस्कृति या परंपराओं को प्रकट करता है बल्कि एकता की शक्ति को भी प्रदर्शित करता है।नृत्य आमतौर पर पूर्णिमा की रात को किया जाता है और कुछ अनुष्ठानों या उत्सवों सेभी जुडे होतें हैं। नर्तक हाथ पकड पकड़कर मादोल (एक प्रकार का ढोलक) की ताल पर झूमते हुए नृत्य करते हैं।

लाठी नृत्य

लाठी नृत्य लोकनृत्य का एक भिन्न रूप है जिसमें अभिव्यक्ति भिन्न रूप से की जाती है। यह नृत्य पश्चाताप, उत्सव , क्रोध, दर्द या प्रेम जैसी विभिन्न स्थितियों को व्यक्त करने के लिए किया जाता है | लाठी नृत्य के नर्तकों की चाल प्रत्येक अभिव्यक्ति को सुन्दर तरीके से स्पष्ट रूप से परिभाषित करती है | यह नृत्य मुहर्रम के मुस्लिम त्योहारों के पहले दस दिनों में किया जाता है।लाठी नृत्य को कई भागों में बांटा गया है। एक बांस की छडी को कई तरह से लिया और इस्तेमाल किया जाता है। यह विभिन्न ध्वनियों के साथ किया जाता है। इस नृत्य का प्रदर्शन अति आकर्षक है।

राभा नृत्य

राभा नृत्य पश्चिम बंगाल का एक प्रसिद्ध लोकनृत्य है जो राज्य के उत्तरी भाग में किया जाता है। यह लोक नृत्य राभा समुदाय की महिलाओं द्वारा प्रस्तुत किया जाता है।

बाऊल नृत्य

यह पश्चिम बंगाल का एक और विशिष्ट नृत्य है। पश्चिम बंगाल की परंपराओं और संस्कृति में हमेशा इसका एक विशेष स्थान रहा है। इसके नर्तक नृत्य का एक विशिष्ट प्रदर्शन करते हैं। वे सही शैली और आसन भी बनाए रखते हैं। नर्तक अच्छी तरह से प्रशिक्षित होते हैं और उनमें नृत्य का जुनून होता है | इस नृत्य का हिस्सा बनना बहुत रोमांचक होता है।

रवीन्द्रसंगीत नृत्य

यह हर्ष का विषय है कि रवीन्द्रसंगीत नृत्य पश्चिम बंगाल के पारंपरिक नृत्य में से एक हैं। लडकियाँ भी इस नृत्य का हिस्सा बनती हैं। यह नृत्य का आकर्षण विदेशियों में भी है। गीत और नृत्य का संगम और नृत्य के हावभाव इतना रोमांचक होता है कि इसका प्रभाव दर्शकों पर बहुत समय तक छाया लगता है। इस नृत्य की यह विशेषता है कि इस नृत्य के माध्यम से आंतरिक भावो की अभिव्यक्ति अति सुन्दर रूप से प्रस्तुत की जाती हैं। हर उम्र का नर्तक इसे करने में सक्षम है और इस नृत्य को करके आनंदित होता है यही रवीन्द्रसंगीत नृत्य की विशेषता है।

बंगाल का शास्त्रीय नृत्य

बंगाल का शास्त्रीय नृत्य हर जगह प्रतिष्ठित और प्रसिद्ध है।यह भारत के साथ साथ भारत के बाहर भी प्रसिद्ध है। बंगाल के लोगों के जीवन में बंगाल के शास्त्रीय नृत्य के प्रति विशेष चाह है।

कहानी कहने के एक रूप के रूप में पारंपरिक नृत्य

पश्चिम बंगाल में पारंपरिक नृत्य कभी अवकाश के समय का सबसे प्रभावी रूप है, हालांकि कहानी कहने का एक तरीका भी है। यह युगों से चली आ रही कहानी कहने की एक समृद्ध सांस्कृतिक अभिव्यक्ति है। यह नृत्य मिथकों , किंवदंतियों और सांस्कृतिक आख्टयानों को संप्रेषित करने का महत्वपूर्ण माध्यम है।

पश्चिम बंगाल में छऊ नृत्य, गौडिय नृत्य और मणिपुरी नृत्य सहित पारंपरिक नृत्य हिन्दु पौराणिक कथाओं , प्राचीन अवसरों और सांस्कृतिक परंपराओं के संबंधों को जोडने के लिए किया गया है | छऊ एक मार्शल नृत्य शैली है। जिसका उपयोग रामायण और महाभारत जैसे हिन्दु महाकाव्यों की लडाईयों को दर्शाने के लिए किया जाता है। दूसरी ओर गौडिय नृत्य एक स्विश नृत्य का रूप है जिसका उपयोग स्नेह करूणा के हिन्दु देवता भगवान कृष्ण के जीवन की यादों को बयान करने के लिए किया जाता है। मणिपुरी , एक भक्तिपूर्ण नृत्य आकृति है, जिसका उपयोग विध्वंस के देवता भगवान शिव के साक्ष्य को सूचित करने के किया जाता है। नर्तक अपने नृत्य के हावभाव के माध्यम से उन पात्रों और अवसरों को अस्तित्व में लाते हैं। गीत पारंपरिक नृत्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जो कथा में गहराई लाने के साथ साथ और भावनाओ को भी जोडता है | रंग विरंगे पोशाक और मेकअप और प्राप्स के प्रयोग के द्वारा कहानी कहने की क्षमता को बढ़ता है।

इसके अतिरिक्त पश्चिम बंगाल के और भी अनेक नृत्य प्रकार हैं। मैने मेरे सामर्थ्य के अनुसार कुछ एक नृत्य प्रकारों को ही यहाँ प्रस्तुत किया है |