सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के लिए उपयुक्त होते अपमानजनक शब्दों को लेकर परिभाषा जारी की है, तीन महिला जस्टिस ने शब्दावली पुस्तिका बनाई है, जो 16 अगस्त को जारी की गई। अब कोर्ट में मिस्ट्रेस, प्रॉस्टिट्यूट जैसे शब्दों का उपयोग नही होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने, कोर्ट में जेंडर स्टीरियोटाइप शब्दो के उपयोग को बंद किया है।कोर्ट में महिलाओं के लिए आगे से चले आ रहे अपमानजनक शब्दों का उपयोग नही होगा। CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि ऐसे आपत्तिजनक शब्दो को कॉन्बेट हैंडबुक में रिप्लेस किया गया है।जिनका उपयोग कोर्ट में जिरह के दौरान वकीलों और न्यायाधीशों के लिए है।हैंडबूक टीका टिप्पणी के लिए नही वरन जाग्रुति के लिए है।बहुत जल्द यह हैंड बुक सुप्रीम कोर्ट की वेब साइट पर अपलोड होगी।
कोलकाता कोर्ट जस्टिस मौसुमी भट्टाचार्य की अध्यक्षता में गठित समिति में निवृत्त जस्टिस प्रभा श्रीदेवन,जस्टिस गीता मित्तल और प्रोफेसर झुमा सेन शामिल हुई, जिन्होंने स्टीरियोटाइप अपमानजनक शब्दो को रिप्लेस कर नई शब्दावली बनाई है।
आइए जानते हैं ऐसे कुछ शब्द….
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अफेयर…….विवाहोत्तर संबंध
- प्रॉस्टिट्यूट….सेक्स वर्कर
- चाइल्ड प्रॉस्टिट्यूट… तस्करी का लाया गया बच्चा
- बास्टर्ड……ऐसा बच्चा जिसके माता पिता ने शादी नहीं की
- इव टीजिंग…..स्ट्रीट सेक्सुअल हैरेसमेंट
- एफिमिनेट…..जेंडर न्यूट्रल
- गुड वाइफ……वाइफ
- कंक्यूबाईन (रखैल)…..एक स्त्री जो शादी से बाहर पुरुष से संबंध रखती है।
ऐसे कई शब्दो की बनी हैंडबुक का नाम है...
कंबेटिंग जेंडर स्टीरियोटाइपस ।
सुप्रीम कोर्ट ने कटघरे में खड़ी रहने वाली महिलाओं के लिए अपमानजनक शब्दों को हटाकर एक न्यायिक काम किया है।
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