भारत की सभ्यता संस्कृति एवं आर्थिक विकास में नदियों का विशेष योगदान है। भारतीय नदियां सिंचाई, जल विद्युत उत्पादन, मत्सयोत्पादन, जल परिवहन एवं व्यापार का महत्वपूर्ण साधन रही है। भारत की अधिकांश नदियां एक ही दिशा में बहती है और वह दिशा है पश्चिम से पूर्व। पर नर्मदा एक ऐसी नदी है जो पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर बहती है। इसे लेकर अनेक कथाएं प्रचलित हैं एक कहानी के अनुसार नर्मदा का विवाह सोनभद्र नद के के साथ तय हुआ था परंतु नर्मदा की सहेली जोहिला के कारण दोनों के बीच दूरियां आ गई। इससे क्रोधित ओर नर्मदा ने आजीवन कुवांरी रहने और विपरीत दिशा में बहने का निर्णय लिया। अगर भौगोलिक स्थिती को देखें तो पता चलता है कि नर्मदा नदी एक विशेष स्थल पर सोनभद्र नदी से अलग होती है। इस नदी के उलटा बहने का भौगोलिक कारण इसका रिफ्ट भेली में होना है, जिसकी ढाल विपरीत दिशा में होती है। इसलिए इस नदी का बहाव पूर्व से पश्चिम की ओर है। इस नदी का एक नाम रेवा भी है जो अरब सागर में जाकर मिलती है।नर्मदा गुजरात की एक मुख्य नदी है जो मध्य प्रदेश के मैखल पर्वत के अमरकंटक शिखर से निकलती है।
इस बीच यह तीन राज्यों से होकर बहती है जिसके कारण अपने साथ विभिन्न प्रदेश की मिट्टी को लेकर आती है।जिससे अपने के आसपास की गुजरात की धरती और अन्य राज्यों की धरती को काफी उपजाऊ बनाती है। गुजरात की धरती का सुजला सुफल होने का एक विशेष कारण नर्मदा है।
नर्मदा ने लोक-कलाओं और शिल्प-कलाओं को पाला-पोसा है। नर्मदा अपने उद्गम स्थल अमरकंटक से निकलकर लगभग 8 किलोमीटर दूरी पर दुग्धधारा जलप्रपात तथा 10 किलोमीटर की दूरी पर कपिलधारा जलप्रपात बनाती है। नर्मदा के जल का राजा है मगरमच्छ , जिसके बारे में कहा जाता है धरती पर उसका आस्तित्व 25 करोड साल पुराना है। माँ नर्मदा मगरमच्छ पर सवार होकर ही यात्रा करती है।
नर्मदा गुजरात राज्य की एक प्रमुख नदी है , जो गंगा के समान पूजनीय है। नर्मदा सर्वत्र पुण्यमयी नदी बताई गई है तथा इसके उद्धव से लेकर संगम तक अनेक तीर्थ हैं।
पुण्या कनखले गंगा कुरूक्षेत्रे सरस्वती ।
ग्रामे वा यदि वारण्ये पुण्या सर्वत्र नर्मदा ।।
मैकल से निकलने के कारण नर्मदा को मैकल कन्या भी कहते हैं। अमरकंटक मे सुन्दर सरोवर में स्थित शिवलिंग से निकलने वाली इस पावन धारा को रूद्र कन्या भी कहते हैं। जो आगे चलकर नर्मदा नदी का विशाल रूप धारण कर लेती है। पवित्र
नदी नर्मदा के तटपर अनेक तीर्थ स्थल हैं। इनमें कपिलधारा , शुक्लपक्ष, मान्धाता, भेड़ाघाट, शूलपानी, भडौच उल्लेखनीय है।
गुजरात में प्रवाह उपरांत अरब सागर में विलीन पूर्व, सरदार सरोवर पर भारत के एक महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं भारत के महान राजनेता सरदार बललभभाई पटेल की विश्व में सर्वाधिक ऊँची (182 मी.) प्रतिमा राष्ट्र का गौरव है। हिन्दुओं का मानना है कि नर्मदा नदी भगवान शिव के शरीर से निकली है, और पवित्रता में नर्मदा का स्थान केवल गंगा के बाद है। प्रदक्षिणा , तीर्थयात्रा तीर्थयात्रियों को भरूच से अमरकंटक तक ले जाती है, नदी के एक किनारे पर और दूसरे के नीचे। जबलपुर के अलावा, इसके तट पर अन्य महत्वपूर्ण शहरों और कस्बों में होशंगाबाद , महेश्वर , हंडिया और मान्धाता शामिल हैं।
परंपरा के अनुसार नर्मदा की परिक्रमा का प्रावधान है, जिससे श्रद्धालुओं को पुण्य की प्राप्ति होती है। नर्मदा परिक्रमा से अभिप्राय है बडी श्रद्धा के साथ पैदल चलते हुए नर्मदा की परिक्रमा। नर्मदा की परिक्रमा 3 वर्ष 3 माह और 13 दिन
मे पूर्ण होती है।
नर्मदा की कुल 41 सहायक नदियां हैं। उत्तरी तट से 19 और दक्षिणी तट से 22 । नर्मदा की आठ सहायक नदियाँ 125
किलोमीटर से लम्बी है। मसलन -हिरण 188 , बंजर 183 और बुढ़नेर 177 किलोमीटर है। मगर लंबाई सहित डेब, गोई , कारम ,चोरल, बेदा जैसी कई मध्यम नदियों का हाल भी गंभीर है। सहायक नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में जंगलों की बेतहास कटाई से ये नर्मदा मे मिलने से पहले ही धार खो रही है। इसकी लंबाई प्रायः 1310 किलोमीटर है। यह नदी पश्चिम की तरफ जाकर
खम्बात की खाडी में गिरती है।इस नदी के किनारे बसा शहर जबलपुर उल्लेखनीय है। नर्मदा की मुख्य सहायक नदियाँ हालन नदी, बंजार नदी, बरना नदी और तवा नदी हैं| तवा नदी नर्मदा नदी की लंबी तथा मुख्य सहायक नदी है | इनका संगम होशंगाबाद जिले में होता है। सुप्रसिद्ध धार्मिक स्थल ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग इसी नदी किनारे अवस्थित है। ओंकारेश्वर, मांधाता नर्मदा नदी के मध्य द्वीप पर स्थित है।
नर्मदेश्वर शिवलिंग या नर्मदा शिवलिंग (लिंगम ) एक विशिष्ट पत्थर है। यह प्रकृतिक रूप से बनता है जो कि मध्य प्रदेश के नर्मदा के तटपर बकावन गाँव में पाया जाता है। जिनका रूप शिवलिंग की तरह होता है। नर्मदा की सहायक नदियों में बायीं छोर से मिलने वाली नदियाँ हैं — शेर , बंजर, शक्कर , दुधी , गंजल , कुण्डी , कोई , कर्जन तथा तथा नदी |
नर्मदा की दाई छोर से आकर मिलनेवाली नदियों में हैं — हिरण, तेंदोनी, बर्ना , कोलार , मैन , उरी , हानी , ओयांग तथा लोहार हैं। नर्मदा नदी पर स्थित प्रमुख बॉध एवं परियोजनाओं में से सरदार सरोवर बॉध ( राजपिपला -गुजरात ), महेश्वर बॉध (खरगोन) , इंदिरा सागर ( खंडवा), आदि प्रमुख बांध हैं जो कि नर्मदा पर निर्मित है।
तापी पश्चिम की ओर से बहनेवाली दूसरी सबसे बडी प्रायद्वीपीय नदी है। इसे ” जुडवां ” और ” नर्मदा की दासी ” के नाम से भी जाना जाता है। कहते हैं कबीर जब गुजरात आए थे तब भरूच के पास नर्मदा के तट अपने शिष्यों के साथ डेरा डाला था। ” कबीरवड ” एक बरगद है जो नर्मदा के तटपर एक छोटे से घाटपर स्थित है। वृक्ष और स्थान 15 वीं सदी के रहस्यवादी – कवि, कबीर से जुडा है। कबीर को समर्पित एक भव्य मंदिर भी है । उन्होने यहाँ कई वर्ष गुजारे थे । उस समय केवल एक ही बरगद का पेड था। उनकी शाखाओं से फैलते हुए यह पेड 3 किलोमीटर की क्षेत्र के अंतराल पर फैल गया है । इस पहुचने पर आपको बस बरगद की हरियाली ही नजर आएगी । यह जगह असीम शांति और पवित्रता का आनंद भी देती है | माना जाता है कि कबीर ने अपने दातोन को यहाँ गाड दिया था जिसने एक विशाल वटवृक्ष का रूप ले लिया। इन दिनो यह एक विशाल और भव्य
पर्यटक स्थल बन गया है । लाखों श्रद्धालु यहाँ दर्शन करने के लिए आतें हैं। यहाँ साधु महात्माओं का मेला लगा रहता है।
बंजर नदी नर्मदा की प्रमुख सहायक नदी है। यह मुख्यतः मंडला बालाघाट क्षेत्र की प्रमुख नदी है। यह अपने उद्गम स्थल बंजारपुर (राजनांदगांव , छत्तीसगढ) से निकलकर मंडला में महाराजपुर के निकट नर्मदा नदी में मिलती है। बंजर तथा
नर्मदा नदी का संगम स्थल एक तीर्थ के रूप में विख्यात है। इस प्रकार से नर्मदा अपने साथ अनेक सहायक नदियों के साथ उनकी समृद्धियों को लेकर चलती है और आसपास के प्रदेशों को समृद्ध बनाती है।
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